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Education today is the economy tomorrow

आज हम बात करेंगे जन साधारण के लिए शिक्षा से जुड़ी उम्मीदों की, आखिर पढना-पढाना क्यूँ? आखिर क्यूँ विकासशील देश अपने जी. डी. पी का एक बड़ा हिस्सा अपने स्कूली तंत्र को सुधारने पर खर्च करते है ? प्रत्येक देश अपने नागरिको के विकास को लेकर चिंतित होता है क्योंकि नागरिको के विकास से ही अर्थव्यवस्था का विकास संभव है और बिना इकॉनमी के किसी भी देश मैं अच्छे रोड, अच्छे हवाई अड्डे, अच्छे प्लेटफार्म , अच्छे अस्पताल जैसी आधारभूत  संरचना का सम्भव हो पाना कठीन है, तो ऐसा माना जा सकता है कि विकास की पहली सीढ़ी स्कूली शिक्षा ही होती है | 

Education today is the economy tomorrow

श्रीमान एंड्रियास श्लेचर (शैक्षिक निति सलाहकार-महासचिव ओ.ई .सि. डी ) कह रहें हैं  "Education today is the economy tomorrow " आज स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता कल अर्थव्यवस्था का निर्धारण करेगी। ” एंड्रियास श्लेचर के इस कथन पर विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है | ख़ासकर तब जब पूरा संसार एक प्रकार से जूझ रहा हो | बड़े-बड़े परमाणु शक्तियों से लैस देश की अर्थव्यवस्था सिर्फ इसलिए चित हो गई क्यूंकि उन्होंने सावधानी नहीं बरती एवं अपने बुद्धि का समुचित उपयोग कर यदि इस विपदा का आकलन कर पाते तो शायद इतनी बुरी स्थिति से बचा जा सकता था | समाज में जब भी कोई मानव निर्मित विपत्ति आती है तो कहीं न कहीं दोष  शिक्षा की गुणवक्ता पर ही उठने लगते हैं |ऐसा होना या करना मेरे विचार से गलत भी नहीं है | किन्तु प्रकृति ने ये पुनः सिद्ध कर दिया कि मानव प्रकृति से बाहर नहीं है, प्रकृति के रहस्य को खोजते-खोजते मनुष्य ये भूल न बैठे इसलिए शायद रिमाइंडर कि तरह इस तरह की घटना (पेनडेमीक) हर सौ वर्षो में घटती रहती है |

चलिए मुद्दे पर लोटते हैं , आजादी के दिनों देश में साक्षरता दर 12 प्रतिशत ही थी किन्तु आजादी के बाद से ही ऐसे बहुत से प्रयास हुए जिससे देश में पढ़े लिखे लोगों कि संख्या बढाई जा सके | आज मालूम पड़ता है कि उद्देश्य केवल सख्या बढ़ाना ही था | इसलिए गाँव-गाँव स्कूल खोले गए , शिक्षकों कि नियुक्ति हुई | ये निशचित किया गया की संख्या बढ़ाने के लिए सबको स्कूल में दाखिला मिले | हर एक किलोमीटर के दायरे पर एक प्राथमिक विद्यालय हो ऐसी व्यवस्था कि गई | किन्तु तब भी बच्चों एवं बच्चियों के नामांकन के अंतर को भांप पाना कठिन ही रहा और उससे भी कठिन था इस अंतर को कम कर पाना | दक्षिण के राज्यों ने ऐसा भेद भाव कम देखने को मिला किन्तु वहां भी बेटों कि अपेक्षा बेटियों को पढाना व्यर्थ ही सिद्ध होता रहा | हलाकि पिछले 10-20 वर्षो में शिक्षा को लेकर लिंग अनुपात के अंतर में कमी जरुर आई है और यह 1981 के 26.62 प्रतिशत की तुलना अब 2011 मे 16.68 प्रतिशत हो गई है और अगले वर्ष अनुमानित जनगणना में इसमें और कमी आएगी ऐसी आशा की जा रही है |

साक्षर होना है या शिक्षित

डाटा में ये भी स्पष्ट है कि साक्षारता दर तो बढ़ी है पर क्या इसके बढ़ने से हमारा काम सम्पूर्ण हो जाता है ? क्या देश कि शिक्षा व्यवस्था का कार्य उनके नागरिको को साक्षर करने तक ही सिमित है या लक्ष्य कहीं और है | हमें साक्षर होना है या शिक्षित अब इस प्रश्न पर गहनता से विचार करने की जरुरत है |

हो सकता है ये सवाल आपको अजीब लगे पर जब हम अपने जीवन के 15 से 25 कीमती वर्ष शिक्षा को देतें हैं तो इस सवाल पर विचार करना जरुरी जान पड़ता है | इस विषय पर समय-समय पर दार्शनिकों ने अपने विचार दियें हैं , इसी प्रश्न को शिक्षा के उद्देश्य से भी जोरकर देखा जाता रहा है | हमारे देश में जब भी शिक्षा की बात होती है तो ज्यादातर अभिभावक इसे बच्चे के आगे जाकर कुछ बनने की प्रक्रिया से जोड़ देतें हैं , बच्चा भी शिक्षा इसलिए ही ले रहा होता है क्योंकि आगे चलकर कुछ बनना होता है हलाकि तबतक उसके मन में बनने को लेकर क्या करने की आवश्यकता है इसकी समझ नही के बराबर ही होती है | अपने अक्सर किसी न किसी व्यक्ति को बच्चे से पूछते सुना होगा " आगे पढ़कर क्या बनोगे ?" बच्चे का जवाब ज्यादातर तैयार ही होता है " शिक्षक या कुछ और "|

शिक्षा क्यूँ ? 

शिक्षा की जरुरत रोजगार पाने के लिए या यूँ कह लें कुछ बनने के लिए | रोजगार या व्यवसाय में सफल होने के लिए |

शिक्षा का सरोकार जीवन कौशल एवं जीवन मूल्यों के निर्माण से भी है , इसके आधार पर ही चरित्र निर्माण सम्पूर्ण एवं समृद्ध हो पाता है

हमें भविष्य में आने वाले समस्याओं एवं आशंकाओं के प्रति तैयार करना 

शिक्षा का उद्देश्य मानव जीवन को अपनी पूरी क्षमता के साथ जीना सिखाना भी है | शिक्षा की भूमिका किसी व्यक्ति के जीवन में बिल्कुल उत्प्रेरक की तरह होती है, जिससे व्यक्ति अपनी पूरी क्षमता को प्राप्त कर पाता है और एक सफल जीवन जीने को तैयार होता है |

मानव में लोकतांत्रिक भावों का विकाश करना एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास स्थापित करना

सीखना कैसे है, ये सीखाना भी शिक्षा का ही काम है ताकि हम आजीवन सीखने के कौशल को जान पायें और सीखने को तत्पर एवं तैयार रहें


अगर हमें कल की तैयारी करनी है और अपने वर्तोतमान को भविष्य के लिए तैयार करना है तो हमें उसके अनुरूप आज शिक्षा में बदलाव करने की आवश्यकता है |

शिक्षा - परीक्षा के द्वारा डिग्री पाने का माध्यम  

किसी भी व्यवस्था का सही-सही आकलन उसके उद्देश्य तक पहुचने की कहानी कहते हैं | शिक्षा में परीक्षा का होना भी शिक्षा के उद्देश्यओं को पाने की कहानी ही होनी चाहिए|  पर क्या ऐसा है ? 10वी की परीक्षा में 99 फीसदी अंक लाने वाला सफल बच्चा क्या अपने जीवन (रोजगार, व्यवसाय...) में सफल होगा ? क्या उसमे अपने व्यवसाय को सफल बनाने योग्य कौशल का विकास हुआ है ? क्या वो एक सफल और सार्थक जीवन जीने योग्य कौशल सीख पाया है ?

या सिर्फ उसके पास है कागज पर लिखे अंक और उसके माध्यम से नौकरी ढूढ़ने की उम्मीद | ज्यादातर बच्चे शिक्षा नौकरी पाने के लिए लें रहें होते  हैं | इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट यूथ एम्प्लॉयमेंट एंड अनएम्प्लॉयमेंट के अनुसार अनपढ़ लोगों की तुलना में पढ़े लिखे ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट युवाओं में अधिक बेरोजगारी है | ऐसा क्यूँ है ? उच्चतर शिक्षा लेने के बाद और अधिक बेरोजगारी !!!

शिक्षा एवं रोजगार :

शिक्षा एवं रोजगार दो अलग-अलग मुद्दे है | शिक्षा के बहुआयामी उद्देश्य हैं पर रोजगार करने का उदेश्य बहुत हद तक सिमित है | रोजगार पेट पालने के लिए किया जा सकता है- हर दिन के खर्चे निकालने के लिए किया जाता रहा  है | अधिकतर हम शिक्षा को रोजगार प्राप्ति के उद्देश्य तक सिमित कर देते हैं | बेहतर रोजगार की संभावना के लिए शिक्षा का बेहतर होना एक आवश्यकता हो सकती हैं | किन्तु बेहतर शिक्षा एवं डिग्री प्राप्त करने के बाद भी सफ़र आसान नही हो पता है | 

और इस कठिन सफ़र को तय करने के लिए शिक्षार्थी को कोई शिक्षा नही दी जाती है |  

अपनी आतंरिक क्षमताओं को जानकर , उन क्षमताओं का विकास करना एवं उन्ही क्षमताओं के आधार पर अपने रोजगार का निर्धारण कर पाना - शिक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी, हर बच्चे के लिए ऐसे मौके देने की होती है |

इस अंतर को जान लेना की शिक्षा सिर्फ जानकारी को याद करके परीक्षा में जैसे का तैसे उतार देना नही है बल्कि जानकारी के आधार पर बेहतर निर्णय लेने के कौशल को कहते हैं | आज की शिक्षा हमें मजदुर बनाती है , अपनी इच्छा से मजदुर बनने में कोई बुराई नही होगी पर हर किसी को मजदूरी के लिए तैयार करना भी शिक्षा का सरोकार नही होना चाहिए | आज ग्रेजुएट होते ही विदयार्थी नौकरी के लिए भटकना शुरू कर देता है | हर विश्वविद्यालय एवं प्रतिष्ठित संस्थानों में प्लेसमेंट सेल होता है , जो नौकर बनने की इस प्रक्रिया में विदार्थियों की मदद करता है  |

100 में केवल विरले ही होते हैं जिन्हें खुद का कुछ करना होता है , खुद को आत्मनिर्भर बनाने की ललक होती है | वो दूसरों को रोजगार देने के प्लान में जुटते हैं | पढ़ लिख कर ये बड़ा आदमी बने न बने समझदार आदमी जरुर बन जाते हैं और यही तो उद्देश्य होना है शिक्षा का | 

यदि विद्यालय या पूरा शिक्षा तंत्र हमें ये शिखाने में जुट जाय की अपनी कमजोरी को सफलता पूर्वक कैसे दूर करें , अपने ऊपर कैसे काम करें , अपना शिक्षण खुद कैसे करें , खुद के भविष्य को कैसे तय करें , समस्या चाहे जो भी हो उसका समाधान कैसे निकालें , अपनी क्षमताओं का संवर्धन कैसे करें, जानकारी के आधार पर निर्णय कैसे लें, तो देश की बहुत सी समस्या का हल शिक्षा के माध्यम से एक युग में सफलता एवं सरलता से किया जा सकता है | सही ही कहा है "Education today is the economy tomorrow"

 



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