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अनेकान्तवाद: अनन्त दृष्टिकोणों से देखे जाने की क्षमता

भारत में जितने भी धार्मिक सम्प्रदाय विकसित हुए उनमें से अहिंसावाद को उतना महत्त्व किसी ने भी नहीं दिया, जितना जैन धर्म ने दिया है। बौद्ध धर्म में, फिर भी, अहिंसा की एक सीमा है कि स्वयं किसी जीव का वध न करो, किन्तु जैनों की अहिंसा बिलकुल निस्सीम है। स्वयं हिंसा करना, दूसरों से हिंसा करवाना या अन्य किसी भी भी तरह से हिंसा में योग देना. जैन धर्म में सबकी मनाही है। और विशेषता यह है कि जैन दर्शन केवल शारीरिक अहिंसा तक ही सीमित नहीं है, प्रत्युत, वह बौद्धिक अहिंसा को भी अनिवार्य बताता है। यह बौद्धिक अहिंसा ही जैन दर्शन का अनेकान्तवाद है। image is AI generated. अहिंसा का आदर्श, आरम्भ से ही, भारत के समक्ष रहा था, किन्तु, उसकी चरम-सिद्धि, इसी अनेकान्तवाद में हुई। इस सिद्धान्त को देखते हुए ऐसा लगता है कि संसार को, बहुत जागे चलकर, जहाँ पहुँचना है, भारत वहाँ पहले ही पहुँच चुका था। संसार में आज जो अशान्ति है, रह-रहकर विश्व में युद्ध के जो खतरे दिखाई देने लगते हैं, उनका कारण क्या है? मुख्य कारण यह है कि एक वाद के माननेवाले लोग दूसरे वादों को माननेवालों को आँख मूँदकर गलत समझते हैं। साम्यव...

प्रतिबिंब से बातचीत

वक्त बे वक्त अपनी ही बात करता है,  ठहरता नही हैं, सुनना नही है, समझता भी नही हैं । एक पल को ठहरना जब थके ना हों, सुनना ऐसे कि समझना चाहते हो, जब सुन पाओ तो सोचना क्या बदलता है, जब सुन पाते हो समुद्र की गहरी तलवटी पर्वत की ऊचाईओ को,  रूके-दौड़ते सतही जीवो को, घ्वनियो से परे, शब्दो से परे, भावो को, विचारो को, पीड़ा-व्यथा सोहाद्र को । ठहरना तब व्यर्थ नहीं, तीर्थ लगेगा, मंजिल तव थी दूर होगी, धैर्य रहेगा, पुछ पाओगे कोमल सवाल, तब बात करना, व्यर्थ, वोझिल, कृत्रिम नही सहज लगेगा।