रौनक अपने मा-बापू का एकलौता लड़का है। बापू की प्राइवेट कम्पनी में नौकरी है। माँ एक हाउस वाइफ हैं उनका काम घर की सफाई से शुरू होकर घर की सफाई में ही खत्म होता है। रौनक वैसे स्वभाव से बड़ा भोला आसानी से बात मान जाने वाला एक साधारण बच्चा है लेकिन है तो बच्चा ही तो अपने इसी बचपने में वो कभी न कभी सामान इधर का उधर छोड़ता रहता है | पढ़ने के लिए किताबे -कांपिया निकली तो बेड पर छोड़ दी , खाना खाया तो थाली फर्श पर ही छोड़ दी | माँ को उसकी इस आदत से चिढ होती है इसलिए कभी-कभी गुस्से में माँ के हाँथ पैर झाड़ू भी चलते रहते हैं | रौनक की मासूमियत इन्ही थप्पड़ और मार से धुलती जा रही है। माँ मारने पीटने के कुछ ही देर बाद बड़ा स्नेह भी करती फिर उसे समझ में नहीं आता कि वो क्या करे। ज्यादातर तो वो अपनी मार को भूल जाता और ऐसा वो इसलिए भी करता क्यूंकि उसे लगता है कि वो ज्यादा देर तक किसी से नाराज नहीं रह सकता है। इस उम्र में भी उसमे ये भाव पता नहीं कैसे आ गए थे। माँ के दुलार और स्नेह से उसकी हंसी निकल जाती थी और वो सब भूल के फिर से साधारण सा व्यवहार करने लगता।
बापू के पास इतना समय नहीं है कि इन सब बातों में ध्यान दे और बापू खुद ही ज्यादा तर किसी न किसी कारण परेशान रहते हैं। रौनक भी सायद ये बात समझता है इसलिए उसके मन में बापू के लिए प्रेम और सम्मान का भाव आने लगा है। बापू की मेहनत तो वो देखता है पर उसे समझ नहीं आता की इतनी मेहनत करने के बाद भी उसके घर कलर टीवी क्यों नहीं है। उसके सभी दोस्तों के घर रंगीन टीवी है जिसमे डिश भी लगा है और हमेशा सिनेमा भी आता है , जब टीवी ऑन करो सिनेमा आ रहा होता है। रौनक के घर में नई पर ब्लैक एंड वाइट टीवी है जिसमे डिश नहीं लगा। उसको लगता की ऐसा इसलिए है क्यूंकि माँ को नहीं पसंद की वह अपना कीमती समय पढ़ने के वजाय सिनेमा या कार्टून के शो देखने में लगाऊँ। उसे हमेशा लगता कि यदि वो अपने बापू को डिश लगवाने को कहेगा तो वो लगवा देंगे पर फिर वो दूसरे ही क्षण सोच में पड़ जाता कि "माँ भी तो है!"
रौनक अपने सब दोस्तों में अकेला है | वो एक ऐसे स्कूल में जाता हैं जहाँ उसके आस-पास रहने वाले कोई दोस्त नहीं पढ़ते। स्कूल में भी उसके सभी दोस्त है और घर पर भी पर वो अपने आप को हमेशा अलग महसूस करता है। उसके स्कूल में पढ़ने वाले दोस्त अमूमन एक ही जगह से ही आते हैं , वे सभी साइकिल पर आते। स्कूल में वो स्कूल के बाद क्या करने वाले हैं, कहाँ घूमने जाने वाले हैं , इसके बाद कोनसे ट्युसन टीचर से पढ़ने जायेंगे इसकी बात करते | रौनक चाहते हुए भी इस तरह के वार्तालाप में अपना योगदान नहीं दे सकता था क्यूंकि उसे स्कूल से घर जाने में ही एक घंटे से अधिक का समय लगता था। और उसके घर पहुँचने तक शाम हो चुकि होती है और उसके आस पास के दोस्त उसके घर पहुंचने तक खेल खत्म भी कर चुके होते थे तो उसे उनके साथ भी खेलने या समय बिताने का मौका नहीं मिलता। सिर्फ स्कूल की छुटियों या गर्मियों की छुट्टियों में ही वो जी भर कर खेलने के सुख को भोग पाता था। रौनक इतने कम उम्र में ही अकेला जीना सिखने लगा है। अब उसकी जिन्दगी में एक साधारण समय सारणी है जिसे वो भागते दौड़ते पूरा करता है और फिर अगले दिन लगभग वही समय सारणी उसका इंतज़ार कर रही होती है।
रौनक के ऐसी परिस्थिति के कारण उसके अन्दर बहुत से ऐसे विचार एवं भाव उमरते थे जो की शायद पच्चीस तीस साल के नौजवान को भी ना सूझे | इतनी कम उम्र में ही उसे अपना जन्मदिन या किसी जन्मदिन आम दिन जैसा लगने लगा | उसे अपनी जन्मदिन का कोई इंतज़ार नहीं होता ना ही उसे किसी के जन्मदिन की पार्टी में जाना पसन्द आता। उसे ये सब अभी से ही पैसे एवं समय की बर्बादी लगती है। उसके सभी दोस्त अपने परिवार से जन्मदिन और धूम धाम से मानाने की बात करते अच्छे अच्छे गिफ्ट की मांग करते वहीँ रौनक अपने माँ बापू से जन्मदिन ना मनाने को कहता | इतने धूम धाम से आयोजित जन्मदिन में भी उसे अपने नाम के विपरीत किसी रौनक का अनुभव नहीं होता | अन्दर से वह उदास ही होता | उसके पास अब कोई नहीं है जिससे अपने दिल की मन की बात कहे। उसके सभी दोस्त हैं पर कोई ऐसा दोस्त नहीं है जो बिल्कुल उसकी परिस्थिति को जनता हो जो उसे समझ सकेगा। जिससे वो अपने स्कूल ,घर हर जगह की बात कह पायेगा। उसे प्यार करने वाले माता-पिता हैं पर वो उनसे भी हर एक बात नहीं कह पायेगा। धीरे-धीरे उसने खुद से ही बात करना शुरू कर दिया। इस तरह से उसका अंतर्मुखी स्वभाव विकसित होने लगा और उसके व्यक्तित्व में ऐसे रम गया जैसे वो पैदा ही इस स्वभाव के साथ हुआ था। उसके पास कहने को बहुत सी बाते हैं पर सुनाने को कोई नहीं और अब तो वो किसी को अपनी बात सुनाना भी नहीं चाहता। वो खुद ही कमरे में अकेला हर बात खुद से ही कर लेता है। अब उसे अकेला कहना भी उचित नहीं। जब माँ की डांट पड़ती है तो रो लेता है खुद ही खुद को समझा भी लेता है , जब गुस्सा आता है तो मन ही मन सबको बुरा भला कह लेता है और फिर शान्त हो जाता है। जब खुश होता है तो अपने आप से ही घंटो कुछ न कुछ बड़बड़ाता रहता है। उसने अपने आप को संभालना सीख लिया है। उसे अपने साथ समय बिताना अच्छा लगने लगा है। उसके कई अरमान है , जिसे वो खुद को ही बताता है और फिर खुद ही उसपर गहन सोच विचार कर उन को बेकार घोषित कर फाड़ कर फेक देता है।
रौनक अपने माता पिता का अकेला संतान है पर अब वो अकेला नहीं है उसके साथ उसका 'मन' है जिससे वो लगातार बात करता है उससे वो अपने सच्चे दोस्त की तरह ही वर्ताव करता है। शायद ही उसे इससे अच्छा दोस्त कभी मिल पाए। उसने अपने आप को ही अपना सबसे अच्छा दोस्त बना लिया है।
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