बच्चों की उर्जा और
होशियारी के चश्मदीद हम पिछले 19 महीनों से हैं और रोजाना इसकी झलकियाँ हमें मिलती
ही रहती हैं| आज का दिन भी ऐसा ही था, LIBRARY CAMPAIGN( “पधारो म्हारे विद्यालय ) के मौके पर आज रामपुरा में
दूसरे चरण के काम को अंजाम देने पहुँचे| जहाँ रंग-बिरंगे चित्र पुस्तकालय की दीवारों की सुंदरता बढ़ा रहे है,
पुस्तकालय के दरवाजे पर राजस्थानी अंदाज में “पधारो म्हारे पुस्तकालय” पाठक को
अपनी ओर आकर्षित करने को तैयार हैं| बस जरुरी इस बात की थी की पुस्तकालय को थोड़ा
व्यवस्थित किया जाए और इसी क्रम में, सबसे पहले उनसे मिलना जरुरी था जो अपने
अंदर सबसे ज्यादा उर्जा रखने वाले होते हैं, कुछ चमत्कारी से होते हैं, और कुछ
हरफ़नमौला| आपका अंदाजा सही जा रहा है, वो हैं “बच्चे” | आख़िर लाइब्रेरी को उपयोग
में लेना इनके लिए इनके स्चूली अधिकार से कम नहीं और तो और इनके कौशलों का स्तंभ
है| बैठ गई उन बच्चों के बीच
में जिनके साथ आज पूरे दिन पुस्तकालय को व्यवस्थित करना था, अब किसी भी चीज के
शुभारंभ से पहले पुरे मन-मस्तिष्क में उस
काम के उदेश्यों का होना तो ज़रूरी ही है| मैंने पूछा बच्चों आपको पता है आप यहाँ
क्यों बैठे हो? किसी ने ‘नहीं’ में उत्तर दिया, किसी ने बताया की ‘ पुस्तकायलय में रखी किताबों को सही तरीके से रखना
है’| इन सबके अलावा हमारे लिए जरुरी ये भी था की हम ये जान पाएं की बच्चे
पुस्तकालय के महत्व को शब्दों में वर्णित करने में कितने सहज हैं, मैंने पूछा
“अच्छा बच्चों आपको क्या लगता है पुस्तकालय क्यों ज़रूरी है?” कुछ देर की चुप्पी के बाद ढेर सारे जवाब आए| किसी ने कहा की
“पुस्तकालय से हमे हर विषय का ज्ञान
मिलता है”, “ पुस्तकों में बड़ी प्रेरणादायक कहानियां होती हैं जो हमारी मार्गदर्शक
के तरह काम करती हैं” और भी बहुत सारे जवाब सामिल थे| पर एक जवाब ऐसा भी जिसकी मैंने तो कल्पना नहीं की थी वो था “
पुस्तकालय हमारे पढने के कौशल को बढ़ता है” | है न बड़ा ही रोचक जवाब? शायद मैं और
आप स्कूल के बच्चों से ऐसे उत्तर की शायद ही अपेक्षा करें| लगभग 45 मिनट की बातचीत
के बाद हम अपने मिशन की ओर अग्रसर हुए|
🖊अन्नू झा
पुस्तकालय में जाते ही लगभग २००० से
ज्यादा पाठ्यपुस्तकों की लगी ढेर पर नज़र पड़ी, थोड़ी आशंका हुई की कैसे होगा ? पर
होनहार बच्चों न तनिक भी देर न किये बिना फटाफट हमारे साथ एक योजना बनाई की हम काम
को कक्षा के स्तर से बाँट लेते हैं, जैसे की कक्षा 9, 10, 11, और 12 किताबों को
कक्षा के अनुसार छांट कर कक्षा 5, 6, 7, 8 के बच्चों को देंगे और वे कक्षा के अनुसार
किताबों के बंडल तैयार करेंगे| अपनी अपनी किताबों के लिए लाइन बना कर “कक्षा 1
कक्षा 1 , कक्षा 5 कक्षा 5” बोल बोल कर बच्चे अपने जिम्मे आई किताबों को इकठ्ठा कर
रहे थे| सच में ये दृश्य बड़ा रोचक था, जहाँ किताबों पर सालों की
धूल जमी थी और उन किताबों को बच्चे इतने रोचक अंदाज में छांट रहे थे| सच में ऐसे
नीरस काम में भी बच्चों ने मुस्कान की छटा बिखेर कर ये तो साबित कर दिया था की
इनका लड़कपन अभी खुल कर सांसे ले रहा है| धीरे- धीरे कर सभी ने टीम वर्क की मिशाल पेश
करते हुए पूरे पुस्तकालय के रद्दी अख़बार, किताबों, धूलों का मानो सफाया ही कर दिया
हो| 2 घंटे लगातार काम करते रहे, किसी ने मेज़ और अलमीरा की सफाई कर उसमे क्रमवार
तरीके से किताबें जचा दीं तो किसी ने वर्षों से पड़े हारमुनियम को साफ़ कर उसकी धुन
भी बजाना शुरू किया| देखते ही देखते पुस्तकालय और निखर उठा था, कुल मिला
कर मजेदार दिन था | स्कूल की छुट्टी तो हो गई थी पर बच्चे मिशन पर तैनात थे, इसी
बिच उनके काम को सराहना देते हुए वहां की अध्यापिका ने बच्चों PARLE –G बिस्कुट खिलाया, हाँ
वही G for GENIUS वाली बिस्कुट| आज मैं
कितनी चीजों की प्रत्यक्षदर्शी रही, बच्चों की टीम भावना , मैनेजमेंट, मिशन स्तरीय
कार्य, सकार्तामकता, और साथ साथ कभी ख़त्म ना होने वाली उर्जा की| सच ये बच्चों के
भीतर ही देखना संभव है , जरुरत है इनकी उर्जा की सही दिशा में संचार होने की|
जल्द ही नए लेख के
साथ आउंगी , बच्चों के लिए, बच्चों द्वारा और बच्चों के पुस्तकालय को पूरी तरह
व्यवस्थित करने के बाद|
Well done
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